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Sunday, April 28, 2013


यह कविता मेरे मित्र संजीत पाठक ने लिखा है। टिप्पड़ी कीजिये कैसा लगा आपको।

कश्ती तब भी चलते थे, कश्ती अब भी चलते हैं,
तब कागज के चलते थे, अब सपनो के चलते हैं।
शिकवे तब भी होते थे, शिकवे अब भी होते हैं,
तब गैरों के होते थे, अब अपनों के होते हैं।

खेल तब भी होते थे, खेल अब भी होते है,
तब चाले थी अपनी, अब मोहरे हमें ही चलते हैं .
कुछ बचपन तब भी थी, कुछ बचपन अब भी है,
तब शरारत में होते थे, अब शराफ़त में होते हैं .

दिन तब भी होते थे, दिन अब भी होते हैं,
तब धूप सुहानी थी, अब छाव भी जलते हैं,
रोते तब भी थे, जब माँ छिप जाती थी,
रोते अब भी है, माँ से हीं छिप-छिप कर।

तब चन्दा मामा था, अब उसपे भी नमी सी है,
तब हर लम्हा अपना था, अब वक़्त की कमी सी है .
तब छुपते से खेल-खेल में, अब ये मजबूरी है,
जो मुट्ठी में थी खुशियाँ, अब उनसे भी दूरी है।

- संजीत पाठक [ https://www.facebook.com/sanjeet.pathak  ]

Tuesday, April 23, 2013

कुछ दिनों पहले मैंने केतन भगत जी को एक ईमेल भेजा था और एक इंटरव्यू के लिए अनुमति माँगा था। उन्होंने ईमेल के उत्तर में अपना मोबाइल नंबर दिया। मेरी बातचीत या यूँ कहें की इंटरव्यू फ़ोन पर हुई। 

इस  इंटरव्यू के प्रायोजक Idiotic Minds है।


Idiotic Minds! is a Social Media Marketing and Digital Advertising Company. Email : iddioticminds@gmail.com

प्र) एक आम आदमी और एक लेखक के रूप में आप अपने को किस तरह परिचय देना चाहेंगे ?

Ketan Bhagat
उ) मैं बहुत ज्यादा आम आदमी हूँ। ज़िन्दगी में बहुत कुछ नहीं कर पाया हूँ पर जो भी किया दिल से, बड़ी ख़ुशी से किया है। मेरे भाई हमेशा से अव्वल आते थे में मुश्किल से पास हो पाता था। शुरू में मैं एक वेटर था। कॉलेज  में कई बार चीटिंग करता पकड़ा गया। धीरे धीरे आगे बढ़ा। मूल रूप से एक जो छोटा बच्चा होता है न घर का बिगड़ा हुआ। कुछ भी चीज़ ज्यादा गंभीरता से नहीं लेता। जिम्मेदारी नहीं समझता वैसा था मैं। लेखक के रूप में बस अभी शुरुआत किया  हूँ। पहली किताब आ रही है बस मुझे लगा यह कहानी लोगों तक लानी चाहिए। मैंने ये कहानी लिखी और इस कहानी में जो समस्या है वो कहीं न कहीं हर कोई महसूस करता है और उसे कोई गाइड नहीं करता। इसलिए मैंने यह कहानी लिखी।


प्र) उपन्यास लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली?

उ) वास्तव में उपन्यास लिखने का ज़िन्दगी में कभी नहीं सोचा था। मैंने कुछ ज़िन्दगी की समस्याओं को महसूस किया और मुझे किसी ने गाइड नहीं किया था। इस गाइड न करने वाली बात से मुझे प्रेरणा मिली की मुझे यह बुक लिखनी चाहिए।



प्र) चेतन भगत आपके भाई एक बहुत बड़े लेखक हैं उनका योगदान या प्रभाव?

उ) लिखने के लिए नहीं वो अलग लिखते हैं मैंने अलग लिखा है। वो अधिकतर कॉलेज लाइफ के बारे में लिखते हैं। लड़का लड़की को प्यार हो जाता है। एक इंसान इंजीनियरिंग  या मेडिकल में जाए। पर मेरी कहानी अलग है। मेरी कहानी में आदमी की शादी हो जाती है मनपसंद लड़की से। नौकरी  लग जाती है। उसको बाहर जाना होता है तो उसको वो भी मिल जाता है। पर उसके बाद क्या? अब क्या? ज़िन्दगी में तो ख़ुशी ही मिलनी चाहिए न इसके बाद? पर नहीं मिलती है। और क्यों नहीं मिलती है? और चेतन भगत से प्रेरणा यह मिली की वो एक जीता जागता उदहारण है उनकी किताबें उनकी पाठकों तक पहुँचती हैं और उन्हें सराहना किया जाता है।



प्र) आपका प्रिय लेखक कौन हैं ?

उ) मेरे कोई प्रिय लेखक लेखक नहीं हैं। मैं कहानी देखता हूँ लेखक नहीं। मेरे ख्याल से कोई भी लेखक हो, अभिनेता हो, गायक हो उसका हर काम अच्छा नहीं होता है। उसका एक काम बहुत अच्छा होता है पर दूसरा इतना गंभीरता भरा नहीं होता। 



प्र) आप शादी शुदा हैं? लव मैरिज या arrange मैरिज है।

उ) हाँ। पूरी तरह से  arrange मैरिज है। मेरी माँ ने धुंडी मेरे लिए लड़की।



प्र) आपके किताब का कोई पात्र आपके दिल के करीब?

उ) सभी पात्र।


प्र) पाठकों को कोई सन्देश?


उ) कृपया मेरी किताब पढ़ें। मैंने बहुत ज्यादा मेहनत  की इस किताब पर और कृपया किताब पढके प्रतिपुष्टि (feedback) दें।


Interview Credit : Additya Bansal [https://www.facebook.com/additya.bansal.9


Wednesday, April 10, 2013

मेरी कविताएँ ...

मेरी कविताएँ ...

आज मैंने अपनी ज़िन्दगी से कुछ पल निकाल कर मैंने अपनी ज़िन्दगी की कुछ लम्हों को कागज़ पर उतारा है। आशा न थी की कुछ ऐसा लिख जाऊंगा ... तो वो लम्हें ये रहे ... 

हालाँकि पहले वाले लेख कविता नहीं कहा जा सकता है। इसे एक शायरी कहना बेहतर होगा ...


 

कुछ अनसुलझें सवालों को, कुछ झिलमिल सी यादों को, आज समेत चल पड़ा हूँ मैं, एक राह पर, एक नयी उम्मीदों पर, मैं चल पड़ा हूँ आज एक नयी ज़िन्दगी की ओर ....

दूसरी लेख में मैंने कोशिश किया है की मैं शब्द अंत्यानुप्रास करूँ तो ये रहा दूसरा .....


मुझे एक अजनबी से कुछ यूँ हुआ था प्यार, दिन थी रात, सिर्फ था तो बस प्यार का खुमार, था तो सिर्फ प्यार का जज़्बात, बस थी प्यार की बातें, थी तो अनकही मुलाकातें, आज वो है, उसकी बात, सिर्फ बची है तो उसकी याद, मुझे एक अजनबी से कुछ यूँ हुआ था प्यार ...

आपको मेरी लिखी हुई कविता कैसी लगी जरुर टिप्पणी कीजिएगा। शुक्रिया ... :-) 

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